1978 । मुख्यमंत्री निवास, जयपुर
राजस्थान के मुख्यमंत्री श्रद्धेय भैरोंसिंह जी शेखावत बहुत देर तक काम करने के आदि थे। बतौर मुख्यमंत्री वे कई बार देर रात तक सचिवालय में काम करते रहते। बाक़ी लोग तो अपना रात्रि भोजन सचिवालय में माँगा लेते थे पर CM साहब ऐसा नहीं कर पाते थे। क्योंकि उनका नियम था की वे अपनी भाभू (माँ) श्रीमती बन्ने कँवर जी के साथ बैठकर ही खाना खाते थे। वे कितना भी लेट हो जाते, उनकी माँ उनका इंतजार करतीं रहती।
भाभू बहुत ही सीधी और भोली भालीं महिला थीं। उनके पिता ठाकुर सौभाग्य सिंह जी बीदावत (सहनाली) बीकानेर रियासत के सम्मानित व्यक्ति थे। वे उस समय की महिलाओं की तरह अधिक पढ़ीं लिखीं नहीं थी। जब उनके पति श्रद्धेय ठाकुर देवी सिंह जी का निधन हुआ तब उनके बड़े पुत्र भैरूसिह जी मात्र 18 वर्ष के थे और उनके छोटे पुत्र आदरणीय लक्ष्मण सिंह जी की उम्र तो मात्र 10 महीने थी।
भैरोंसिंह जी को छोटी सी उम्र में ही अपने परिवार की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ी थी। इस कारण भाभू अपने भैरोंसिंह के बारे में बहुत चिंतित रहती थी। जब 1977 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तो भाभू ने पूरे खाचरियावास में यह कहके गुड़-पताशे और मिठाई बँटवाई की “म्हारो भैरुसिंह सगले राजस्थान को सरपंच बणग्यो “। भैरोंसिंह जी ने जब मुख्यमंत्री की शपथ ली तब सीधे मंच से उतरके अपनी माँ के पाँव छूकर प्रणाम किया तो माँ ने यही आशीर्वाद दिया “भैरूंसिंह तू सरपंच तो बणग्यो है, अब कदेई कोई गरीब री हाय मत लीजे, सगलाँ रो काम करजे अर थारे पितरां रो नाम करजे “
उन्हें अपने पुत्र पर गर्व तो बहुत था पर जब वो दिन और रात को खाना खाने समय पर नहीं आते तो उन्हें बहुत रीस आती थी। एक बार जब भैरोंसिंह जी रात को बहुत लेट घर पधारे तो भोजन करते समय भाभू ने उनको डाँटते हुए कहा “भैरूंसिंह, तू आ किसी सरपंच की नौकरी कर ली.. ना खाणो खाबा रो ठिकाणो ना सोबा रो, तू एक काम कर, थारी आ नौकरी तो छोड़, थारे कने अत्रा बाण्या आवे है, कोई बाण्या ने कैर चोखी सी नौकरी कर ले तो थारे खाबा पीबा रो तो आराम रैसी!
यह बात सुनकर भैरोंसिंह जी सहित पूरा परिवार ज़ोर से हंसने लगे… साहब ने अपनी माँ के भोलेपन का सम्मान करते हुए कहा.. ठीक है भाभू, आप कैवो हो तो कोई दूसरी नौकरी देखूँ“
एक बार भाभू विधानसभा देखने गयीं तब भैरोंसिंह जी जनसंघ विधायक दल के नेता थे और श्रद्धेय मोहनलाल सुखाड़िया जी मुख्यमंत्री। उन्होंने देखा कि भैरोंसिंह जी और सुखाड़िया जी सदन में एक दूसरे से ज़बरदस्त वाद विवाद कर रहे थे, आरोप लगा रहे थे। जब भाभू भैरोंसिंह जी के कक्ष पहुँची तो देखा सुखाड़िया साहब वहीं बिराज रहे थे… उन्होंने भाभू के पाँव छूकर प्रणाम किया तो भाभू ने ग़ुस्से से उन्हें कहा “अबार तो म्हारा भैरूंसिंह ने इयाँ मैण्या कसे अर अब म्हारे धोक देवो?” यह सुनते ही सुखाड़िया साहब और भैरोंसिंह जी ज़ोर से हंसने लगे.. उन्होने कहा “भाभू माइने तो राजनीति ही, वियाँ तो सुखाड़िया साहब अर म्हे सगा भाई जश्या हाँ।” यह बात सुनकर भाभू ने सुखाड़िया साहब को तो खूब लाड़ किया व आशीर्वाद दिया पर अब उनका ग़ुस्सा भैरोंसिंह जी की तरफ़ बढ़ गया “माइने तो जीनावरां रे जियाँ लड़ो अर अठे सागे चाय पीता थाने शरम कोनी आवे ? मन्ने तो आगे हूँ थारी इं विधान सभा में कदेई मत लेर आजयो।