गंभीरता कभी धार्मिक नहीं होती, यह धार्मिक हो भी नहीं सकती। गंभीरता अहंकार के कारण है, जो एक बिमारी का ही अंश है। मुस्कान तो अहंकार मुक्त होती है। हाँ, आपके हंसने में और एक धार्मिक आदमी के हंसने में अंतर होता है। अंतर यह है कि आप हमेशा दूसरों पर हँसते है और धार्मिक आदमी खुद पर हँसता है या फिर मानव के सम्पूर्ण भद्देपन पर। धार्मिकता जीवन उत्सव के अलावा कुछ और नहीं हो सकती, जबकि गंभीर व्यक्ति पंगु हो जाता है, वो स्वयं व्यवधान पैदा कर देता है। वह नाच नहीं सकता, गा नहीं सकता. उसके जीवन से उत्सव का आयाम ही गायब हो जाता है। ऐसा व्यक्ति खुद को धार्मिक मानने का दिखावा कर सकता है, पर ऐसा होता नहीं है। अब समझे कि हंसी भी हंसी नहीं है, आप हर समय शुद्ध तरीके से बच्चे के सामान नहीं हस सकते और जब आप ऐसा नहीं कर सकते तो आप पवित्रता, निर्दोषता जैसी मूल्यवान चीजों को खो रहे होते है।
आप एक बच्चे का हँसना देखें, हंसी उसके हृदय से आती है। जब बच्चा जन्मता है तो प्रथम चीज़ जो वह सीखता है, असल में सीखता नहीं, अपने साथ लाता है, वह है मुस्कान। किसी भी व्यक्ति को उम्रभर हर स्थिति में हँसना चाहिए, इससे आप में परिपक्वता आएगी। यहाँ यह भी नहीं कहा जा रहा कि कभी रोना नहीं. पर सच यह है कि आप यदि हंस नहीं सकते तो आप रो भी नहीं सकते क्योंकि ये दोनों एक ही घटना के दो पहलू है। सच और प्रमाणिक होने के। हम तभी हँसते है जब कोई कारण हमें हसने हेतु बाध्य करे। चुटकुले पर हम हँसते है क्योंकि यह हम में एक प्रकार की उत्तेजना पैदा करता है। चुटकुले में ऐसा होता है की एक दिशा में कहानी चलती है, अचानक मोड़ आता है, जिसका आपको कतई अंदाज़ा नहीं होता है। उस उत्तेजना में आप पंचलाइन की प्रतीक्षा करते है, पर होता ऐसा है कि आपकी कल्पना जैसा कुछ नहीं होता है, बल्कि बहुत अलग भद्दा या मजाकिया कुछ होता है, आपकी अपेक्षा के विपरीत। यह बताना चाहता हूँ कि हंसने से आपके अन्दर से कुछ ऊपरी बाहरी स्तर पर आती है, जब आप हँसते है तो कुछ देर के लिए आपका सोचना रुक जाता है और उन क्षणों में गहन ध्यान अवस्था में
होते है।
हँसना और सोचना साथ साथ हो ही नहीं सकते. यानी जब सच में आप हँसते है, तो आप सोच नहीं पाते।
और यदि सोच रहे है तो फिर हंसी आपकी असल हंसी नहीं है, वह पीछे छुट रही होती है।
जब आप सच में हँसते है तो उस वक़्त आपका दिमाग गायब होता है, वह चलता नहीं है।
सारी झेन प्रक्रिया इसी पर टिकी है की बिना दिमाग की स्थिति में कैसे पहुंचना।
और हंसी ही वह दरवाज़ा है जिसमें से आप नो माइंड की स्थिति में पहुँच सकते है।